मनोरंजन

क्रोध – विवशता- इन्द्रसेन यादव

जल रही थी रवि के क्रोध से हो गई थी बेचारी

गगन ने आज महसूस की इस धरा की लाचारी।

 

मेघों को आज भेज मित्र को है बहुत समझाया

बड़े स्नेह से हैं मेघ ने है उसे आंचल में सुलाया।

 

बेचैन थी धरा को आज कुछ चैन मिल गया है

इन नन्ही बूंदों का आज जो सहारा  मिल गया है।

 

अभी भी रवि कुछ-कुछ शरारत दिखा रहा है

उस मेघ रूपी आंचल को बार-बार हटा रहा है।

 

जिससे  धरा  के  मन में  कुछ संदेह  हो रहा  है

लगता है  रवि  क्रोध  में  अभी भी जल रहा है।

 

जो भी  हो  धरा ने  कुछ  सुकून तो  है पाया

इसलिए गगन संग मेघ का आभार है  जताया ।

– इन्द्रसेन यादव  ‘इंदर’ प्रवक्ता, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

Related posts

परमात्मा से मिलने की विधि – मुकेश मोदी

newsadmin

चतुर्मास की महिमा – टी.एस. शान्ति

newsadmin

वर दे माँ वीणा वादिनी – कालिका प्रसाद

newsadmin

Leave a Comment