आज भींगते-भींगते विद्यालय जाना,
और अधभीगे बदन पहुँच कर मुस्कुराना ,
स्मृति पटल पर उकेर गया
उन स्मृतियों को,
जिसे वर्षों पहले बन्द कर दिया था यादों की आलमारी में।
वहीं स्कूल, वही किताबे ,
वहीं अन्दाज़।
वैसी ही हवाओं की सनसनाहट
और शांत वातावरण में झींगुरो की आवाज़।
बस नही हैं तो तुम सब,
फिर भी ये सारी बातें
मुझे अतीत में खींचने के लिए है पर्याप्त।
रोम रोम है पल्लवित अभिसिंचित
और मेरे भीतर आज फिर हो तुम सब व्याप्त।
क्या तुम से किसी को याद है,,,
पानी मे टर्राते मेढ़को को पकड़ना ,
फिर काँच के बोतल में डाल स्कूल लाना।
कभी-कभी शरारत मैं हमारे बैंच के पास उन्हे छोड़ना,
और किसी न किसी लड़की का उसे देखकर चिल्लाना।
कभी अचानक किसी का फिसलना,
और चोट लगने पर भी हॅस कर खड़ा हो जाना।
लड़कियों से लड़को का शरमाना।
विज्ञान के कक्षा में गणित के विद्यार्थियों का छुपकर बैठ जाना।
पकड़े जाने पर हजार बहाने बनाना।
प्रैक्टिस के नाम पर देर तक लैब का चक्कर लगाना।
मन मे हजार सवाल लेकर भी कुछ न पूछ पाना।
क्या आज की युवा पीढ़ी यह समझ पाएँगी।
सच कहूँ तन पर पड़ती इन बूँदो ने,
आज सहज ही मेरे मन पर दस्तक दे दी।
मौन और मुस्कुराहटों से भावों को पढ़ते थे हम लोग ।
जानें कितनी मर्यादाओं में जकड़े हुएँ भी निभा लिए अपने स्नेहवत रिश्ते।
हमारी कभी बात तो नही हुई,
मगर फिर भी वो सारी बातें
आज वर्षा की बूंदो के साथ आँखो के सामने टपकने लगी।
काश कुछ पल मिल जाता उधार ।
हम फिर एक बार पढ़ते एक दुसरे का मौन।
और एक मुस्कान के साथ कह पातें
अलविदा दोस्त।
जो कभी कह न पाये तुम सबसे।।
– रूबी गुप्ता, दुदही, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश ।