है घन घनघोर गरजता,
वसुधा की छाती सुखी है,
तपती पाषाण उगले अँगारे,
थलचर-जलचर भी दुःखी है।।
प्यासी चमन नभ को निहारे ,
निशा प्रिय गिनते सब तारे,
पलक-पावड़े पेड़ बिछाये,
श्यामल घन बरसात तो लाएँ।।
है चैन नही मिलती तपिश में,
रवि किरण से जले दिशायें,
सुखी सरिता,सरोवर,गंढक़,
लौ उगलती बही हवा ये।।
झमाझम जब लगी बरसने
सुखद फ़िज़ा ये झूम गए
प्यास बुझी चर-अचर की
प्रचंड लूँ जब घूम गए।।
– समीर सिंह राठौड़, बंशीपुर, बांका, बिहार