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हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

डर नहीं जाना कि उनके हाथ में तलवार है ।

युद्ध करने को हमारी कौम भी तैयार है ।

 

हाथ में खंज़र दिखाकर आयतें जो पढ़ रहे ,

क़त्ल उनका शौक है या नूर का व्यापार है ।

 

मज़हबी मय पी रहे वो आदमी के खून की ,

कौम पूरी रोग से पीड़ित बहुत बीमार है ।

 

जंगली फरमान आते हैं ख़ुदा की आढ़ में ,

ईश निंदा नाम पर ये सुर्ख़ कारोबार है ।

 

वो हमें खंज़र दिखाकर आग में घी डालते ,

एक के बदले हमें भी बीस की दरकार है ।

 

राजनैतिक आढ़ में फिरकापरस्ती बढ़ रही,

झील की कुछ हरकतों से क्षुब्ध पारावार है ।

 

वोट की ख़ातिर घिनौना खेल जारी है यहां ,

दोष उसका मान लो जिसकी जहां सरकार है ।

 

हिंदुओ बारूद को क्यों राख कहते फिर रहे ,

देख लो अंदर छुपा अंगार ही अंगार है ।

 

फैसला कुन जंग की नज़दीक घड़ियां आ रही ,

नागरिक कानून ही इस रोग का उपचार है ।

 

कल बहुत रोना पड़ेगा आज यदि सँभले नहीं,

सत्य पोषित कथ्य “हलधर” वक्त की हुंकार है ।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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