डर नहीं जाना कि उनके हाथ में तलवार है ।
युद्ध करने को हमारी कौम भी तैयार है ।
हाथ में खंज़र दिखाकर आयतें जो पढ़ रहे ,
क़त्ल उनका शौक है या नूर का व्यापार है ।
मज़हबी मय पी रहे वो आदमी के खून की ,
कौम पूरी रोग से पीड़ित बहुत बीमार है ।
जंगली फरमान आते हैं ख़ुदा की आढ़ में ,
ईश निंदा नाम पर ये सुर्ख़ कारोबार है ।
वो हमें खंज़र दिखाकर आग में घी डालते ,
एक के बदले हमें भी बीस की दरकार है ।
राजनैतिक आढ़ में फिरकापरस्ती बढ़ रही,
झील की कुछ हरकतों से क्षुब्ध पारावार है ।
वोट की ख़ातिर घिनौना खेल जारी है यहां ,
दोष उसका मान लो जिसकी जहां सरकार है ।
हिंदुओ बारूद को क्यों राख कहते फिर रहे ,
देख लो अंदर छुपा अंगार ही अंगार है ।
फैसला कुन जंग की नज़दीक घड़ियां आ रही ,
नागरिक कानून ही इस रोग का उपचार है ।
कल बहुत रोना पड़ेगा आज यदि सँभले नहीं,
सत्य पोषित कथ्य “हलधर” वक्त की हुंकार है ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून