गए जब से हो दुनिया से
हम इंतजार करते हैं
खुली आंखों के ख्वाबों से
तेरा दीदार करते हैं ।
मेरे मालिक मेरे रहबर
क्यों छोड़ा इस वीराने में
यहां रह पाएँ हम कैसे
जतन सौ बार करते हैं ।
यह खाली जिंदगी भाई
तुम्हारा ग़म न भरती है
पीयूषी कम न हो एहसास
यही ऐतबार करते हैं।
– सुधा श्रीवास्तव’पीयूषी’
प्रयागराज उत्तर प्रदेश