कहकहे जो सुनाते रहे ।
तालियाँ खूब पाते रहे ।।
महफिलें लूटने लग गए।
लड़कियों को हँसाते रहे ।।
वो बने मंच की शान हैं।
जो विदूषक कहाते रहे ।।
घट गया मोल इंसान का ।
लोग बिकते-बिकाते रहे ।।
प्रेम की बात मत कीजिये।
बस छलावे-छलाते रहे ।।
वक्त पे काम आए नही ।
दोस्त ही हम बनाते रहे ।।
जिंदगी खूबसूरत लगी ।
आप जब मुस्कुराते रहे ।।
हाशिये पर खड़े रह गए ।
हाशिये जो बनाते रहे ।।
नीलिमा प्यार की ये ग़ज़ल
हम जहां को सुनाते रहे ।।
– डा० नीलिमा मिश्रा , प्रयागराज, उत्तर प्रदेश