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गजल – मधु शुक्ला

फिक्र उसकी सताती रही रात भर,

नींद मातम मनाती रही रात भर।

 

चाँद था बेखबर और मैं बावरी,

प्रीति आँसू बहाती रही रात भर।

 

चाव जागा हमें कब मुलाकात का,

पर्त मन की हटाती रही रात भर।

 

क्यों मुनासिब नहीं आशिकों को खुशी,

यह पहेली बुझाती रही रात भर।

 

जब कहा चाँदनी ने कहाँ दिल लुटा,

‘मधु’ हकीकत छुपाती रही रात भर।

— मधु शुक्ला . सतना, मध्यप्रदेश

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