कालचक्र की गति बताती ,
इतिहास बताता रहा सदा,
जो मौन रहे निर्बल होकर,
संत्रास बताता रहा सदा।
जो छोड़ चुके थे शस्त्रों को,
दुनियां ने उनको तोड़ दिया,
विजयश्री ने दुत्कार दिया,
और अपनों ने भी छोड़ दिया।
अगर शूल न होंगे तो फिर,
फूल नहीं टिक पाएंगे,
कायर हों वीरों का वंशज,
तो मिट्टी में मिल जाएंगे।
मन सन्यासी हो जाएं,
खड़तालों की झंकारों में,
मगर विजय का मंत्र छुपा है,
तलवारों की धारो में।
महाबली की गदा बताती,
राम का सायक कहता है,
पांचजन्य के स्वर को लेकर,
गीता का नायक कहता है।
शस्त्र उठाये बिना बताओ,
कब तक तुम टिक पाओगे,
इतिहासों में प्रश्नचिन्ह बन,
कायर ही कहलाओगे।
रणमध्य छोड़कर शस्त्र कभी,
करुणा नहीं बाटा करतें
जो जंगल के राजा होते हैं,
नाख़ून नहीं काटा करतें ।
– श्रद्धा शौर्य , नागपुर, महाराष्ट्र