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हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

दुश्मन विषाणु विश्व का मधुरस गटक गया ।

रोटी गयी गरीब की सब कुछ सटक गया।

 

क्या आप जानते नहीं बेशर्म मुल्क को ,

ये चीन के विज्ञान का शीशा चटक गया ।

 

हमने कभी यकीन से जाना नहीं खुदा ,

पूरा जहान देख लो उल्टा लटक गया ।

 

थी मूक प्रार्थना कभी गायब अजान थी ,

उन्माद जाति धर्म कोरोना झटक गया।

 

जो आसमान नापता फिरता जरीब से ,

ऐसे अमीर मुल्क को धरती पटक गया ।

 

कहते नहीं थकते थे हम भारत महान है ,

वो प्राण वायु के लिए दर दर भटक गया ।

 

ये छाज भाँति काम कोरोना किया नहीं  ,

थोथे अनाज की जगह साबुत फटक गया ।

 

कालीन लाख के बिछे उसके दलान में ,

बाबा चिकित्सकों को चिड़ा के मटक गया ।

 

साहित्य चापलूस चाटूकार हो गया ,

“हलधर” कहा अदीब की आँखों खटक गया।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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