अलंकार रस रंग बरस रहे,
छंद सवैये की टोली,
मंच पर गीतों की मच गयी होली।
रची रची भाव चली पिचकारी,
छुट गयी काव्य की गोली,
मंच पर गीतों की मच गई होली।
दोहों का रंग भरा भंग पिला के,
चली ठहाके ठिठोली,
मंच पर गीतों की मच गयी होली।
रसना का रस विरह डूबकर,
चली अलंकृत बोली,
मंच पर गीतों की मच गयी होली।
रस राजा के रस में डूबा,
ओज कविन की बोली,
मंच पर गीतों की मच गई होली।
मर्यादा के राम अबध में,
संग सिया अलबेली,
मंच पर गीतों की मच गई होली।
वृंदावन की नार छवीली,
खेले लट्ठ मार रंग रोली,
मंच पर गीतों की मच गई होली।
रहि-रहि ताली की अबीर उड़त हैं
रंगे कविन हमजोली
मंच पर गीतों की मच गई होली ।
– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर