दस,बीस,सौ के नोट की कीमत नहीं रही ।
खेती में बैल जोट की कीमत नहीं रही ।
सरकार दे रही है मुफ्त आब रोशनी ,
अब कोठियों के वोट की कीमत नहीं रही ।
दूल्हों की तो पोशाक हैं अब शेरवानियाँ ,
शादी में पेंट कोट की कीमत नहीं रही ।
उसने जरा सी बात पर धोखा दिया मुझे ,
अब आशिकी में चोट की कीमत नहीं रही ।
कुश्ती ,कबड्डी खेल के परिधान अब नए ,
दोनों में अब लँगोट की कीमत नहीं रही ।
परमाणु के हथियार से दुनिया डरी हुई,
बारूद के विस्फोट की कीमत नहीं रही ।
अब टॉप जीन्स पहन के रहती हैं युवतियाँ ,
साड़ी व पेटीकोट की कीमत नहीं रही ।
विश्की के साथ मिल रहा मुर्गा भुना हुआ ,
नमकीन दालमोट की कीमत नहीं रही ।
खाना बचा हुआ रखा ताज़ा फ़्रीज में ,
बासे हुए अब रोट की कीमत नहीं रही ।
मिलने लगी “हलधर” रकम मोटी दहेज में ,
दुल्हन में किसी खोट की कीमत नहीं रही ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून