टूट गये शजर से सहारा कौन दे?
दूर निकल गये, आसरा कौन दे?
वक्त रहते न सम्भाला खुद को।
मुफलिसी में न मिले, दुआ कौन दे?
जिंदगी भटकने जब लगी अदब से।
रास्ते अदब के,मशविरा कौन दे?
घुट रहा बिखरते ख्याब को देख के।
रास्ते से हमे अब उठा कौन दे ?
कद्र जो दिल से करते नही,ऋतु।
हाथ अपना बढा हौसला कौन दे।
– रीतू गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली