रिश्ते नाते आज , न सबको हर्षाते हैं,
लोगों के अंदाज, अब यही दर्शाते हैं।
रिश्तों का संसार, सिकुड़ता ही जाता है,
बैरी ईर्ष्या, द्वेष, वृहद होते जाते हैं।
नातों का सम्मान, सदन को प्यारा होता,
जो भी जाने बात, मनुज वे मुस्काते हैं।
माता जैसा भाव , अगर होता रिश्तों में,
होते मालामाल, सच यही तो पाते हैं।
भावों का शृंगार, मनन द्वारा होता है,
संबंधों को भाव , शुचि हमेशा भाते हैं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश