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बलूचिस्तान: वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की संभावनाएं – नरेंद्र शर्मा परवाना

 

neerajtimes.com – हाल ही में बलूचिस्तान ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया है । बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत के लिए जाना जाता है। यह पाकिस्तान का यह ऐसा प्रांत है जो अपनी खास पहचान रखता है। लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति, आर्थिक ढांचा, यहां की संस्कृति, सभ्यता, भाषा और यहां के लोगों का रहन सहन  पाकिस्तान से अलग है,इसी कारण यहां के निवासी निरंतर पाकिस्तान से अलग होने के लिए प्रयासरत हैं।

मेहरगढ़ की सभ्यता (7000 ईसा पूर्व) से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक, बलूचिस्तान का प्राचीन इतिहास गौरवशाली रहा है। 1944 में जनरल मनी ने स्वतंत्र बलूचिस्तान का विचार प्रस्तुत किया, और 1947 में कलात रियासत ने स्वतंत्रता की घोषणा की। हालांकि, 1948 में पाकिस्तान ने सैन्य बल प्रयोग कर इसे अपने अधीन कर लिया। तब से बलूच राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता की मांग ने जोर पकड़ा। बलूच लोग पाकिस्तान पर अपनी भाषा, संस्कृति और संसाधनों के शोषण का आरोप लगाते हैं। 1970 के दशक से बलोच राष्ट्रवाद ने सशस्त्र संघर्ष का रूप लिया, जिसमें बलोच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे संगठन प्रमुख रहे।

सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विशेषताएं –

बलूचिस्तान की संस्कृति में बलोची भाषा, पारंपरिक नृत्य (छाप), और कढ़ाई से सजे परिधान प्रमुख हैं। यहां की सामाजिक संरचना कबीलाई है, जिसमें मर्यादा, आतिथ्य, और सामुदायिक एकता को महत्व दिया जाता है। धार्मिक रूप से, अधिकांश बलोच सुन्नी मुस्लिम हैं, लेकिन हिंदू धर्म (0.4 प्रतिशत आबादी) और अन्य अल्पसंख्यक भी मौजूद हैं। श्री हिंगलाज माता मंदिर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल भी यहीं है। आर्थिक रूप से, बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों (गैस, तांबा, सोना) से समृद्ध है, लेकिन विकास की कमी और संसाधनों के कथित शोषण ने असंतोष को बढ़ाया। जनसंख्या लगभग 1.23 करोड़ (2023 के अनुमान से) है, जिसमें बलोच, पश्तून, ब्राहुई, और अन्य जातीय समूह शामिल हैं।

स्वतंत्रता आंदोलन: संगठन, नेता और वैचारिक आधार –

बलूचिस्तान का स्वतंत्रता आंदोलन बलोच राष्ट्रवाद पर आधारित है, जो सांस्कृतिक पहचान, आर्थिक स्वायत्तता, और राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग करता है। बलोच लिबरेशन आर्मी (2000 में स्थापित) और बलोच रिपब्लिकन आर्मी जैसे संगठन सक्रिय हैं, जो सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से अपनी मांगें उठाते हैं। प्रमुख नेताओं में अकबर खान बुगती (2006 में हत्या), मीर यार बलोच, और ब्रह्मदाग बुगती शामिल हैं। मीर यार बलोच ने हाल ही में स्वतंत्रता की घोषणा कर भारत और यूएनओ से मान्यता मांगी है। यह आग्रह मानवाधिकार हनन, जबरन गायब करने, और सांस्कृतिक दमन के आधार पर किया गया है। वैचारिक रूप से, आंदोलन धर्मनिरपेक्ष है और मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारों से प्रेरित रहा है।

*भविष्य की संभावनाएं –

वर्तमान में, बलूचिस्तान में तनाव चरम पर है। मई 2025 में मीर यार बलोच ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिसे सोशल मीडिया पर व्यापक समर्थन मिला। भारत से दूतावास खोलने और यूएनओ से शांति मिशन की मांग की गई, लेकिन किसी देश ने बलूचिस्तान को अभी तक मान्यता नहीं दी। बलूच लोग भारत को समर्थक मानते हैं, क्योंकि भारत ने बलूच मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है। भविष्य में, यदि यूएनओ या भारत जैसे देश समर्थन देते हैं, तो बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की संभावना बढ़ सकती है। हालांकि, पाकिस्तान का सैन्य दबाव और क्षेत्रीय जटिलताएं चुनौतियां बनी रहेंगी। आर्थिक विकास, शिक्षा, और सांस्कृतिक संरक्षण के साथ ही शांतिपूर्ण बातचीत इस क्षेत्र के भविष्य को आकार दे सकती है

वैश्विक समर्थन और कूटनीतिक प्रयास –

बलूचिस्तान का स्वतंत्रता आंदोलन ऐतिहासिक अन्याय, सांस्कृतिक गौरव, और आर्थिक शोषण के खिलाफ एक संघर्ष है। इसकी समृद्ध संस्कृति और कबीलाई एकता इसे विशिष्ट बनाती है। मीर यार बलोच जैसे नेताओं और बीएलए जैसे संगठनों ने इस आंदोलन को जीवंत रखा है। भारत और यूएनओ से मान्यता की मांग एक नए युग की शुरुआत हो सकती है, लेकिन इसके लिए वैश्विक समर्थन और कूटनीतिक प्रयास आवश्यक होंगे। बलूचिस्तान का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि यह क्षेत्र अपनी पहचान को कितनी मजबूती से संरक्षित और प्रस्तुत करता है। (विभूति फीचर्स)

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