देख आतंक लगता बुरा वक्त है,
लगरहा नफरतों से भरा वक्त है।
आदमी इस कदर बेरहम बेवफा,
मतलबी आंधियों का हरा वक्त है।
रो रही जिंदगी जल रहा है जहां,
मौत से जिंदगी का डरा वक्त है।
लोग उगलें जहर जान लेतें सदा,
बादलों से लगे की घिरा वक्त है।
जी रहा आदमी देख सहमें हुए,
हाँथ पर हाँथ लगता धरा वक्त है।
जुल्म कब तक सहें लोग काहें डरें,
मोड़ दे अब हवा यह खरा वक्त है।
देख लोना तमाशा अड़ा आज अनि,
दहशती कह रहें बेसुरा वक्त है।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह,
धनबाद, झारखंड