तिश्रगी दिल की बतलाए गये हैं,
नजाकत आज बिखराए गये हैं।
सलीके से सजा लो बाल अपने,
बड़ी मेहनत से धुलवाए गये है।
गलत को आज माने सब सही हैं,
सही को झूठ बतलाए गये है।
गले मे हार नेता के हैं डाले,
खुदाया लोग भटकाए गये हैं
गरीबो से करे हैं बदगुमानी,
लगाकर तोहमत लाए गये हैं।
लगे जन्नत हमें भी दिलरुबा सी,
हुस्ने ए- जाना को पाये गये हैं।
गरीबी मे सिले हैं होठ उनके,
जलाकर दिल को समझाए गये है।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़