मनोरंजन

मन मेरा बड़ा पछताया – मुकेश कुमार

नैन खुले जब मेरे जग में, लगी थी ये सृष्टि प्यारी,

गूंज उठी थी जन्म कक्ष में, मधुर मेरी किलकारी।

 

याद न थी जाति मुझको, धर्म से था मैं अनजान,

मेरे मुख मण्डल पर, छाई थी मनमोहक मुस्कान।

 

समझ गया कुछ ही वर्षों में, इस दुनिया का भेद,

संस्कारों की चादर पे, दिखे मुझे विकारों के छेद।

 

घृणा के प्रचण्ड वेग से, बिखरे प्रेम के मोती सारे,

समझकर भी न समझे लोग, लगे बहुत ही बेचारे।

 

स्वार्थ ने उधम मचाकर तोड़ी, स्नेह की छत्रछाया,

जिद के पीछे हम हमने, मासूमों का खून बहाया।

 

धन की पूजा होते देखी, धर्म कहीं नजर न आया,

इस नर्क लोक में आकर, मन मेरा बड़ा पछताया।

– मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर

मोबाइल नम्बर 9460641092

Related posts

हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

नज़ारा – सुनील गुप्ता

newsadmin

इहे गुजारिश – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

Leave a Comment