मनोरंजन

पीर – अनुराधा पाण्डेय

नीर लेखनी में भरकर वह,

पीर लिखा करती थी…

मई जून की कठिन दुपहरी,

रिश्तों को पिघलाते।

बादल भी सपनों में आकर,

मन को बहुत डराते ।

नींद चुराकर रातें हँसती,

बिस्तर मुँह बिचकाते ।

उसकी आँखें भरी-भरी सी

नित्य बहा करती थी…….

पीर लिखा करती थी….

 

गली मोहल्लों के बच्चों सङ्ग ,

वो भी खेला करती।

जाड़े की गुनगुनी धूप सी,

अक्सर हँसती रहती।

दिनभर आँगन चौराहे पर ,

वह कपास सी उड़ती।

उसकी आँखों में चुप-चुप पर,

बूँद पला करती थी ।

पीर लिखा करती थी…

 

वह सपनों को देख देखकर,

सपनोँ में ही जीती,

भीतर से वह फटती जाती,

बाहर चादर सीती,

सालों से वह जूझ रही थी,

उस पर क्या क्या बीती ।

भीतर भीतर आग समेटे,

सदा दहा करती थी ।

पीर लिखा करती थी ।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

Related posts

डीप स्टेट की अंतर्राष्ट्रीय साजिश का शिकार तो नहीं बन रहे गौतम अदाणी – मनोज कुमार अग्रवाल

newsadmin

2 अक्तूबर- डा० क्षमा कौशिक

newsadmin

कविता – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment