मुकरे होंगे लोग कुछ, देकर स्वयं जुबान।
तभी कागजों पर टिके, रिश्ते और मकान।।
जिनपे तन-मन,धन, समय, सदा किया कुर्बान।
लोग वही अब कह रहे, तेरा क्या अहसान।।
कत्ल हुए सब कायदे, इज्जत लहूलुहान।
कदम-कदम हर बात पर, बदले अब इंसान।।
रिश्तों का माधुर्य खो, अकड़े जब संवाद।
आंगन की खुशियां मरे, होते रोज विवाद।।
कैसे करें यकीन हम, सब बातें लें मान।
सिखलाए गुर दौड़ के, जब लँगड़े इंसान।।
पेड़ सभी विश्वास के, खो बैठे जब छांव।
बसे कहां अपनत्व से, हो हरियाला गांव।।
मेरे अक्षर लेखनी, दिल के सब जज्बात।
सौरभ मेरे बाद भी, रोज करेंगे बात।।
– डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका,
कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045,