गंगा, यमुना, सरस्वती, रचते संगम धाम।
मिलतीं नदियाँ प्यार से, प्रयागराज सुनाम।।
उपनाम त्रिवेणी पड़ा, संगम कहता आम।
कुंभ नहान सदा यहाँ, मिटता कष्ट तमाम।।
शैलानी आते यहाँ, संगम करें प्रणाम।
धर्म धजा फहरे सदा, छाँव रहे या घाम।।
निर्मल संगम घाट पे, दैनिक प्राणायाम।
जीने की है लालसा,जीवन यह संग्राम।।
जड़ता तनमन की मिटे, भज लें सुबहों शाम।
त्रिपुरारी चित में बसें, पावन संगम धाम।।
सीतलता मन को रुचे, संगम प्यारा नाम।
ऋषियों का दर्शन करें, निकट बसें श्रीराम।।
संगम मन को तार दे, ठठरी का क्या दाम।
दंभ द्वेष बेकाम सब, प्रभु का दामन थाम।।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झरखंड