मनोरंजन

प्रेम यदि है मत इसे हृद में दबाओ – अनुराधा पाण्डेय

एक अरसा हो गया है,

आज कोई गीत गाओ…

 

क्यों हुआ अवरूद्ध मादक

कण्ठ है मुझको बताना?

पूर्ण हर लूँ पीर सारी ,

घाव उर मुझको दिखाना?

चेतना अब शून्य लगती….

ओ! मदन कुछ गुनगुनाओ।

एक अरसा हो गया है

आज कोई गीत गाओ…।

 

राग सारे खो रहे क्यों?

मौन मुझको खल रहा है।

चिर प्रणय की आँच में नित,

उर उभय का जल रहा है।

प्राण में भर दो खनक कुछ…..

रागिनी कोई चुराओ?

आज कोई गीत गाओ।

 

प्रीत की मधुरिम गली यह,

आज सूनी लग रही है?

मै निहारूं बाट हरदम ,

सद्य आँखे जग रही है।

बाग मन के सूखते हैं….

आ! सरस कुसमित बनाओ।

आज कोई गीत गाओ।

 

चाँद नभ से झाँकता है,

चाँदनी देखो! बुलाती।

देख! मैं चलती अकेली ,

यंत्रणा हरपल रुलाती।

है नदी का तट अकेला……

साथ आ! तुम भी निभाओ।

आज कोई गीत गाओ।

 

अनगिनत क्यों उठ रहे हैं,

प्रश्न मन में यों निरन्तर?

प्रीत का मतलब बताओ?,

क्या जलाना आभ्यन्तर ?

धिक! मुझे यदि मैं रुलाऊं…..

धिक! तुम्हें यदि तुम रुलाओ।

एक अरसा हो गया है

आज कोई गीत गाओ…?

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

Related posts

शब्द महिमा – कालिका प्रसाद

newsadmin

बदले मौसम, बदले मन – सुनील गुप्ता

newsadmin

नाटू नाटू चला खाटू – सुनील गुप्ता

newsadmin

Leave a Comment