भोर की पहली किरन का क्या करें ।
सांझ की सहमी थकन का क्या करें ।
रोशनी के काफ़िले भयभीत हैं ,
आग में लिपटी तपन का क्या करें ।
सूर्य के पथ पर तिमिर का राज है ,
लक्ष्य से भटके विजन का क्या करें ।
भार मधुरा मंजरी की गंध में ,
टहनियां इसके वजन क्या करें ।
एक अर्सा हो गया बिछुड़े हुए ,
हृदय में विरही चुभन का क्या करें ।
छंद तो घायल पड़े साहित्य में ,
मुक्त कविता के चलन का क्या करें ।
हर तरफ फैला कुहासा बैंगनी ,
रंग दोषों के नयन का क्या करें ।
शुद्ध कविता रो रही है मंच पर ,
चोर कवियों के चयन का क्या करें ।
मर चुकी संवेदनाएं काव्य में ,
कथ्य के ओढ़े कफ़न का क्या करें ।
शीश चढ़कर बोलते हैं शे’र ये ,
क्रुद्ध ‘हलधर’ हैं वचन का क्या करें ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून