चार दिन की रोशनी है इन चुनावों के सफर में !
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!
रह गए पीछे कहीं जो साथ चलते थे हमेशा ।
अब ठगे से हो गए जो गात मलते थे हमेशा ।
पंख उनके कट चुके हैं चील गिद्धों के नगर में !
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!1
मोतियों वाले सपन अब आ रहे हैं याद हमको ।
कीट गंदे आब वाले दे रहे क्या स्वाद हम को ।
सीपियों की कोख बंजर हो गयी है सिंधु घर में !
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!2
साथ बगुलों के निभाना भाग्य में ऐसा लिखा था ।
चुग गया मोती हमारे हंस के जैसा दिखा था ।
रोग पीड़ित मछलियों के खार चुभते अंतसर में !
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!3
जिंदगी की तल छटी पर सूखती कुछ काइयां हैं ।
जाति मज़हब खोजती कुछ घूमती परछाइयाँ हैं ।
गीत “हलधर “लिख गए हैं भाव की बहती लहर में !
लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून