मनोरंजन

कहाँ थे पहले? – डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

खिड़की के हिलते पर्दों के पास

तुम्हारी  परछाईं  नज़र आती है

काश !

तुम होते –

ख़यालों में, कल्पनाओं में

कितने रंग उभरते हैं

दूर कहीं अतीत की

झील में डूब जाते हैं

कभी लगता है, स्वप्न देख रही हूँ

कभी लगता है जाग रही हूँ

 

यह बोझिल सन्नाटा, यादों का तूफ़ान,

तुम्हारे ख़यालों की चुभती लहरें,

मेरे भीतर कहीं टूटती, बिखरती,

एक अनकही पीड़ा में सिमटती

अनजान  सी  चुभन  उतरती

मैं थक चुकी हूँ इस अंतहीन दर्द से,

अदृश्य स्पर्श, जो छूटता ही नहीं।

हर साँस में, तुम बसते हो,

जहरीली हवा की तरह घुलते हो।

क्यों हर साँस में, मैं तुम्हें सहूँ?

क्यों इस विष को पीती रहूँ?

 

यह कैसी विडंबना,यह कैसा भाग्य का खेल

दो किनारों का कभी हो नहीं पाता मेल

एक उलझा बेबसी का  जाल,

यह अनसुलझा सवाल

यह  तड़प यह जलती हुई आग, जो बुझ न सके,

फिर भी, मैं तुमसे प्रेम करूँ।

 

तुम कहाँ थे पहले?

जब   हर  रुत   बहार  थी  मेरी

जब हर शाम बे – क़रार थी मेरी

दूर कहीं एक खोया तारा,

एक बुझती हुई रशिम…

मैं कहाँ थी पहले?

एक बीज, जो मिट्टी में दबा था कहीं

उमंगों का प्रवाह, जो  रुका  था  कहीं

कैसे जिया होगा मेरा मन,

बिना तुम्हारे स्पर्श के ?

एक अकेला चुम्बन, खोई हुई आत्मा

भटका हुआ एक निराधार सपना।

 

जब तुम आए,

मेरी राह प्रकाशित हुई

मेरी दिशा निर्धारित हुई

जब तुम आये

मेरी साँसों में मधुरिम संगीत घुला

मेरी  करूणा से  प्रेम  गीत  बना

हमारी राह हमारी मंज़िल एक हुई

हे अदृश्य प्रेम,

तेरा स्पर्श पा कर

मन  में  भरा  स्वर्णिम  अहसास

तुम  लगे बहुत पास…बहुत  पास

आज मुझे लगा

अब मैं उलझी पहेली नहीं

तुम हो मेरी कल्पना में

अब  मैं  अकेली  नहीं।

– डॉ जसप्रीत कौर फ़लक, 11, सेक्टर-1 ए

गुरु गियान विहार, डुगरी, लुधियाना

141013 मोबाइल न. 9646863733

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