( 1 ) प्रवाह
साहित्य का बहता चले,
अजस्त्र ज्ञान का झरना यहाँ बहे !!
( 2 ) साहित्य
गंगा में नहाते चलें,
नित्य प्रेम ज्ञानामृत के मोती मिलें !!
( 3 ) काहे
किसी से कुछ कहें,
माँ भगवती की वंदना प्रार्थना करें !!
( 4 ) बहता
रहे भावों का सागर,
बस पकड़ भाव काव्य रचते चलें !!
( 5 ) चले
उतारते मन भावों को,
माँ सरस्वती को अर्पित करते रहें !!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान