कैसे कर लेते हो वह प्रेम जरा बताओ ना
बिन कहे समझ जाते हो जरा समझाओ ना,
बाबू, सोना, बेबी, माय लव, के युग में भी
पढ़ लेते हो आंखों को जरा सिखलाओ ना।
कैसे इन्कार में ढूँढ लेते हो इकरार
बिन बताए भी महसूस कर लेते हो प्यार,
कैसे कर सके परिभाषित इस अहसास को
है एक दूजे के पर किया न कभी इज़हार।
उसे पसंद इश्क़ का वही अंदाज पुराना,
आँखों के मिलते आँखों का झुक जाना,
सहेजना किताबों में दबे सूखे गुलाब को
डाकिये का इंतजार, चिट्ठियों का जमाना।
प्रेम में हार कर भी जग से यूँ जीत जाना
बातों को याद करके धीमे से वो मुस्काना,
आज में जी कर भी उनका वही इश्क पुराना
बहुत भाता है उनका कुछ भी नहीं जताना।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर