इस नाव में सूराख है पतवार को मत दोष दे ।
कमजोर तेरी जाख है हथियार को मत दोष दे ।
उस आग से खेलें नहीं अब भी समय है मान ले ,
शोलों के ऊपर राख है अंगार को मत दोष दे ।
मौसम बहुत ठंडा हुआ इस बात पर भी ध्यान दे ,
क्यों मानता बैसाख है पतझार को मत दोष दे ।
जलती चिताएं कह गईं मातम न कर बस युद्ध कर ,
घुसपैठिया गुस्ताख़ है सरकार को मत दोष दे ।
इस देश के कानून को कुछ लोग धोखा दे रहे ,
ये आंकड़ा सौ लाख है दो-चार को मत दोष दे ।
उसने हमें कोसा बहुत इस मौसमी आलाप पर,
मधुमास वाला पाख है शृंगार को मत दोष दे ।
जो कौम”हलधर”आन पर लड़ती नहीं अड़ती नहीं ,
बचती न उसकी साख हैअख़बार को मत दोष दे ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून