मनोरंजन

ऋणानुबंध – सुनील गुप्ता

हम सभी, बंधे ऋण में

मिले यहाँ पर, प्रारब्ध कर्मों से अपने

और ऋण चुकता, करते चले   !! 1 !!

 

नियत समय, स्थान पे मिलते

और चलें आपस में ऋणानुबंध पूर्ण करते,

संचित कर्मों का,  क्षय करते  !! 2 !!

 

लाखों, करोड़ों लोगों में से

हम यहाँ चुनते, मात्र कुछ ही को

और उनसे, संबंध निभाए चलते!! 3!!

 

ये अमूल्य जीवन पाया हमने

अपने शुभ पूर्व कर्मों के फलानुसार यहाँ,

आओ चलें, यहाँ सत्कर्म करते!! 4!!

 

जीए चलें यहाँ, जीवंत जीवन

हरेक पल-क्षण का भरपूर आनंद लेते,

और रहें श्रीहरिशरण में बनें  !! 5 !!

– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

Related posts

आराधिका राष्ट्रीय मंच पर ‘यमराज मेरा यार’ का लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी संपन्न

newsadmin

तू इतनी क्यूँ जरूरी है – सुनील गुप्ता

newsadmin

पावस गीत – पुष्प प्रियदर्शनी

newsadmin

Leave a Comment