मनोरंजन

गीत – मधु शुक्ला

मॉ॑  मेरी  मॉ॑ कहने वाले, बेदर्दी सब निकल रहे।

सोच रही है भारत माता, क्यों इतने सब बदल रहे।

 

तालमेल अपनाते थे जो , आज बोलियाॅ॑ बोल रहे।

प्रिय था जिनको भाईचारा, विष रिश्तों में घोल रहे।

बॅ॔टवारे की बातें सुनकर, ऑ॓सू माॅ॔ के उबल रहे …..।

 

घर ऑ॑गन में नित दीवारें, नई दिखाई देती हैं।

निजता की इच्छाओं को अब , घर की ईंटें सेतीं हैं।

ममता से सिंचित ऑ॑चल को , प्यारे बच्चे कुचल रहे…..।

 

आज  भारती  तड़प  रही  है , पीर  नहीं  समझे  कोई।

स्वार्थ,द्वेष संतति का लखकर ,बिलख- बिलख कर मॉ॑ रोई।

अब सुत उसके नैतिकता तज ,चमक दमक पर फिसल रहे ..….।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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