हर घर-घर में रावण है,
आपस में ही क्लेश है।
त्रेता युग के राम आज़ कहाँ चले गए,
प्रेम, अपनापन और भाईचारा खत्म हो गई।
द्वापर युग का महाभारत आने वाला है,
अपने ही घरों में कौरव सेना है।
भाई-भाई में आपसी प्रेम नहीं,
बिना केस और मुक़दमा का ज़मीन नहीं।
कोई किसी का नेकी बात नहीं समझता,
अहंकार में ही सभी चकनाचूर रहता।
सत्संग, धर्म व नीति की कभी बातें नहीं होती,
हिंसा, अधर्म व कूटनीति की चर्चा हमेशा होती।
आज़ का मानव दानव कब बन गया,
दीन-दुखियों को कैसे यातनाएँ देने लगा।
जंगल का पेड़-पौधों कटकर शहर बन गया,
सारे नगर व शहर में प्रदूषण भर गया।
गाँव की मिट्टी कितनी निराली है,
अतीत का दिन बहुत याद आती है।
राम राज्य की पुनः आगमन हो,
हर मानव में दया और करूणा हो।
– प्रकाश राय, समस्तीपुर, बिहार