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तमसो मा ज्योतिर्गमय – मंतोष कुमार सिंह

neerajtimes.com – भारत त्यौहारों का देश है। ये पर्व भारतीय संस्कृति को परिलक्षित करते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का दिव्य संदेश देने वाला पर्व दीपावली है। हमारे देश में दीपावली को भिन्न-भिन्न रूपों में बड़ी धूमधाम से मनाये जाने की परंपरा वर्षों से कायम है, जो देश के बाहर निवास करने वाले उपनिवेशी भारतीयों में भी समान रूप से लोकप्रिय है। दीपावली हमारा सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्व है। इसके संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। जनसामान्य की धारणा में दीपावली का संबंध मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम से है, जो चौदह वर्ष बाद रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में लोगों ने दीप जलाए थे। दीपावली के संबंध में महाकाली द्वारा असुरसंहार का भी आख्यान है। जैन धर्म अनुयायियों के लिये भी दीपावली एक विशेष पर्व है।  जैन यह पर्व अपने अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर की मोक्ष प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाते हैं। यह सिखों का भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण पर्व है।

प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति की एक खास विशेषता रही है कि इसे न सिर्फ संस्कृति, बल्कि बौद्धिक एवं नैतिक मूल्यों से भी जोडऩे  की सार्थक कोशिश की गई है। यही कारण है कि वर्तमान समय में तमाम उपभोक्तावादी माहौल के बीच कुछ हद तक मिट्टी की सोंधी महक शेष बची है।

दीपावली जो अपने आप में कई अर्थ समेटे हुए है। लेकिन प्रमुख अर्थ में यह ज्योति की तरफ इंगित करती है। दीप हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, जीवन की समग्रता का प्रतीक हैं। यह जहां भी जलता है जब भी जलता है सबको एक-सा प्रकाश बांटता है बिना किसी भेद के।

दीप का संदेश प्रकाश पाने के लिये मन को मंदिर-सा पवित्र बनाना होता है और भीतर की कलुषताओं को, बुराईयों को, विचारों की कालिमा को धू-धू कर जलाना होता है।

इसी संदर्भ में कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। माटी का स्नेह, बाती का सौहाद्र्र और तेल की स्निग्धता की त्रिवेणी विनम्रता से अग्नि को आमंत्रण देकर एक दीप प्रज्वलित करती है। स्नेह, सौहार्द, स्निग्धता एवं विनम्रता अपने इस अमृत गुणों को संपूर्ण आस्था से सींचती रहती है।  फलस्वरूप एक दीप से करोड़ों दीप बगैर अवरोध और समस्या के अविरल जलते रहते हैं। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य, मृत्यु पर अमरत्व की शाश्वत विजय का पर्व है और दीपोत्सव मनाये जाने एवं घर की मुंडेर पर दीप जलाए जाने की परंपरा के मूल में यही संदेश छुपा है। दीप का प्रकाश एक प्रेरणा है जो हमें सही राह का पथिक बनाता है।  दीपावली वर्ष में एक बार आती है पर दीपक तो हर रात को जलता है। जीवन में खुशियां बिखेरने वाली दीपावली का त्यौहार अंधकार को मिटाकर उजियाला फैला देता है।

इन दीपकों की रोशनी में दया, क्षमा, स्नेह और सौहार्द हमारे आदर्शों के आभूषण हैं। हर तरफ जगमगाते दिये, मिठाइयों का अम्बार, पटाखों का शोर कुछ दिन पूर्व से ही इसके आने की सूचना देने लगते हैं। अनेक मंत्रों का ध्यान कर लोग महालक्ष्मी की पूजा भी करते हैं। धान्य लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, जय लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, राज लक्ष्मी और सौभाग्य लक्ष्मी,ये लक्ष्मी के अष्ट रूप हैं।

इस रूप में वे पूरे समाज की आराध्य हैं। लक्ष्मी विष्णुप्रिया हैं। उन्हें धर्म व बुद्धि प्रिय है पापाचरण नहीं।

दीपावली के पावन पर्व पर विभिन्न स्थलों पर लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। लक्ष्मी के संग श्री गणेश की भी पूजा अर्चना की जाती है। (विभूति फीचर्स)

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