आज धरणि का चंद्र अटरिया चढ़ जाएगा,
गगन चंद्र का चाप यकीनन बढ़ जाएगा।
निरखि तुम्हारा रूप चंद्रिका व्रत तोड़ेगी,
प्रिये! तुम्हारी चमक चंद्र का मद तोड़ेगी।
तुम्हें देखते ही तारों में हलचल होगी,
नभ-वैतरणी प्रतिछाया से उज्वल होगी।
देवलोक के देवों का मन हतप्रभ होगा,
उन्मुख चेहरा नीलगगन में जब जब होगा।
स्वर्गलोक का स्वर्ग लगेगी धरती माता,
धरती विचरण को आतुर हो स्वयं विधाता।
चन्द्रकिरण की डोरी पर झूला झूलेंगे,
सुर-बालाओं के गुस्से से मुँह फूलेंगे।
ऑटोग्राफ तुम्हारा लेने बाल सितारे
छत पर ही आ जाएंगे सारे के सारे।
चपला चम-चम खूब सेल्फ़ी तब खींचेगी,
अपने दांतों तले उँगलियाँ रति भींचेगी।
मंद पवन में होंगी कंगन की झंकारें,
झूम उठेंगी मेंहदी की खुशबू से बहारें।
शलभ तितलियाँ लाखों तुम पर मढ़रायेंगे,
तब ये सारे ग्रह वलय में रुक जाएंगे।
कटि अंगों से नदी स्वयं का रूप रंगेगी,
घन केशों पर घन के मन आसक्ति जगेगी।
तब धीरे से कवि पार्श्व आलिंगन होगा,
बाहुपाश में प्रिये और मन में मन होगा।
अपने हाथों से तुमको जलपान कराकर,
तब दोनो व्रत खोलेंगे कुछ मीठा खाकर।
समक्ष तुम्हारे यूँ तो सब कुछ फीका होगा,
लेकिन करवा चौथ न इससे नीका होगा।
– भूपेन्द्र राघव , खुर्जा , उत्तर प्रदेश