लिखा था एक खत मैंने,
पर वह पोस्ट न हुआ,
चाहती थी तुम उसे पढ़ो,
पर तुम तक तक पहुंचे कैसे?
फिर एक दिन बनाकर उसकी कश्ती
बारिश में बहा दिया,
देखो वह पहुंच भी गया
पर शायद गलत पते पर,
तुम्हें मिला होता तो
आज भी खत नहीं लिखती मैं।
अभी भी लिखती हूं खत
पर अब पोस्ट भी नही करती,
न ही कश्ती बना बहाती हूं
डरती हूं ,फिर न पहुंच जाए
किसी गलत पते पर ।
तुमने भी तो कभी पुकारा नहीं
मुझे तलाशा नहीं
खत भी नही लिखे कभी,
क्या नहीं उड़ता एहसासों का बवंडर
तुम्हरे अंदर
शायद कोई तुम्हारा खत ,
मुझ तक पहुंच जाता
तो आज भी मैं खत नहीं लिख रही होती।
– रेखा मित्तल , चंडीगढ़