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कविता – जसवीर सिंह हलधर

संविधान की उड़ी धज्जियां , गठबंधन परिपाटी में ।

भगत भूल कर भी मत आना, भारत भू की मांटी में ।।

 

नाम शहीदे आज़म है बस, भाषण वाजी नारों में ।

सरकारी फाइल में अब भी, नाम लिखा हत्यारों में ।

महंगाई की बात करोगे, तो गद्दार कहाओगे ।

मंदिर मस्जिद के झगड़े में, बिना बात फस जाओगे ।

मज़हब खींच रहे भारत को , गृह युद्ध की खाटी में ।।

भगत भूल कर भी मत आना , भारत भू की मांटी में ।।1

 

पट्टे पर आज़ादी आयी, ब्रिटिश ताना बाना है ।

शासन कालों का है लेकिन, आसन वही पुराना है।

संघर्षों को भूले नेता ,और आपकी फांसी भी ।

बलिदानों पर शर्मिंदा है दिल्ली, मेरठ, झांसी भी ।

कविता कैद लिफाफे में , कवि घूमें चौपाटी में ।।

भगत भूलकर भी मत आना भारत भू की मांटी में ।।2

 

शहरी लोगों की कीमत है, बूझ नहीं वनवासी की ।

एम ए, बी ए खोज रहे हैं, नौकरियां चपरासी की ।

ढेरों में इज्जत लुटती है जय ढोंगी संन्यासी की ।

रीति वही है नीति वही है सरकारी अय्यासी की ।

सारा माल अडानी की या, अंबानी की आंटी में ।।

भगत भूल कर भी मत आना भारत भू की मांटी में ।।3

 

सत्य अंहिंसा के झांसे में , राम लला थे तम्बू में ।

भारत मुर्दाबाद लिखा था श्रीनगर-औ-जम्बू में ।

बहुत बड़ी तादात देश में घुसपैठी भी रहते हैं ।

सर से देह जुदा करने की , धमकी अब तो देते हैं ।

कश्यप कुल घर से बेघर है ,केसर वाली घाटी में ।।

भगत भूल कर भी मत आना भारत भू की मांटी में ।।4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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