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गीत – जसवीर सिंह हलधर

भारत मां को सता रही है, मज़हब की बीमारी ।

सत्ता हथियाने को एका, करते भ्रष्टाचारी ।।

 

भूखे औ लाचार दिलों में, धधक रही है ज्वाला ।

कहीं भूख से रोता बचपन, कहीं हाथ में प्याला ।

इंकलाब की वाट जोहता, झोंपड़ियों में नारा ।

घायल बिलख रहा है मेरा ,संविधान बेचारा ।

 

संसद में हंगामा करते , मज़हब के व्यापारी ।।

भारत मां को सता रही है मज़हब की बीमारी ।।1

 

आज़ादी या पराधीनता, खोयीं अंतर अपना ।

स्वर्णों के बच्चों को मानो, नौकरियां हैं सपना ।

हमें राह दिखलाने वाले, खुद ही रस्ता भूले ।

सात दशक से झूल रहे हैं , भूख गरीबी झूले ।

नेता झूठे जालसाज कुछ, ढोना क्या लाचारी ।।

भारत मां को सता रही है मज़हब की बीमारी ।।2

 

करना है आह्वान क्रांति का तनिक करो मत देरी ।

आतंकों के साये सर पे गूँज रही रण भेरी ।

बापू के चेले चिंतित हैं, संसद में कोलाहल ।

निर्वाचन के महापर्व की ,गांव गली में हलचल ।

जाति पांति पर आधारित , टिकटों की दावेदारी ।।

भारत मां को सता रही है मज़हब की बीमारी ।।3

 

वक्त तभी करवट लेगा जब ,  इंकलाब आएगा ।

अपराधी कोई भी नेता , जीत नहीं पाएगा ।

कुछ नेता विषधर समान हैं, भाषा बहुत विषैली ।

करते हैं विष वमन रोज वो ,भरी ज़हर की थैली ।

इनकी हार सुनिश्चित करना , कोशिश रहे हमारी ।।

भारत मां को सता रही है ,मज़हब की बीमारी ।।4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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