मुझे तो धोखा देकर जा रहे हो,
यकीं है तुम भी धोखा खा रहे हो।
मेरी दुनिया को तुम बर्बाद करके,
किसे आबाद़ करने जा रहे हो।
अगर चाहे थे मुझको हद से ज़्यादा,
तो मुझपे क्यूँ सितम तुम ढा रहे हो।
कोई बेदर्द भी देता नहीं जो,
मुझे उस दर्द से तड़पा रहे हो।
मेरी कश्ती, मेरे पतवार थे तुम,
तो क्यूँ मझधार बनते जा रहें हो।
बिछाकर ख़ार यूँ बिस्तर पे मेरे,
किसी की सेज तुम महका रहें हो।
दिये थे जिससे तुम ‘रूबी’ को धोखा ,
तमाशा फिर वही दुहरा रहे हो ।।
– रूबी गुप्ता, कुशीनगर , उत्तर प्रदेश