रघुवर रहते जिसके उर में, हर पाप उसी से डरता है।
संसारी हो चाहे मानव, जग संत उसी को कहता है।
भाई को नहीं परखता वह, आशा बेटे से रखे नहीं।
श्रम पर विश्वास करे हरदम, रहमत की रोटी चखे नहीं।
शुभ कर्मों को साथी माने, संतोष हृदय में बसता है…. ।
व्रत तीरथ में रहे ध्यान नही, करता जन का अपमान नहीं।
करुणा, ममता पालक होता, झूठी रखता पहचान नहीं।
उपकार उसे प्रिय होता है, मानवता दिल में रखता है…।
दौलत से प्रेम नहीं करता, चोरों से तभी नहीं डरता।
निर्भय होकर जीवन जीता, अपने हृद को पावन रखता।
मन में राम नाम मणि रख कर, संसार समर में बढ़ता है…।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश