तन तो ऐसे भी बेगाना , मन के सारे पृष्ठ खँगाले ।
चीर-चीर कर हृदय पोर को, देखे सारे स्वर औ व्यंजन ।
उठते उससे देखे प्रतिपल , तेरे नामों के अनुगुंजन।
चुन-चुन उन धुन मणिका को ही, मैंने गीतों में हैं ढाले ।
तन तो ऐसे भी बेगाना,मन के सारे पृष्ठ खँगाले ।
तुझ- सा चंदन , तुझ-सा पावन ,मिला न कोई जग का कोना।
देखा जग को माणिक तज कर,कहता है मिट्टी को सोना ।
मैने तेरी उपमा के हित ,अंबर क्षिति तल सरि मथ डाले ।
तन तो ऐसे भी बेगाना,मन के सारे पृष्ठ खँगाले ।
उजले तन हैं वसन श्वेत हैं ,औ कपाल चंदन चर्चित हैं ।
लेकिन अक्सर देखे मैंने ,जग के मन में मल गर्हित हैं।
देखें हैं मैंने जगती के ,हटा-हटा कर तन के जाले ।
तन तो ऐसे भी बेगाना,मन के सारे पृष्ठ खँगाले।
– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली