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तन भी बेगाना – अनुराधा पाण्डेय

तन तो ऐसे भी  बेगाना , मन के सारे पृष्ठ खँगाले ।

चीर-चीर कर हृदय पोर को, देखे सारे स्वर औ व्यंजन ।

 

उठते उससे देखे प्रतिपल , तेरे नामों के अनुगुंजन।

चुन-चुन उन धुन मणिका को ही, मैंने गीतों में हैं ढाले ।

तन तो ऐसे भी बेगाना,मन के सारे पृष्ठ खँगाले ।

 

तुझ- सा चंदन , तुझ-सा पावन ,मिला न कोई जग का कोना।

देखा जग को माणिक तज कर,कहता है मिट्टी को सोना ।

मैने तेरी उपमा के हित ,अंबर क्षिति तल सरि मथ डाले ।

तन तो ऐसे भी बेगाना,मन के सारे पृष्ठ खँगाले ।

 

उजले तन हैं वसन श्वेत हैं ,औ कपाल चंदन चर्चित हैं ।

लेकिन अक्सर देखे मैंने ,जग के मन में मल गर्हित हैं।

देखें हैं मैंने जगती के ,हटा-हटा कर तन के जाले ।

तन तो ऐसे भी बेगाना,मन के सारे पृष्ठ खँगाले।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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