आँख उनसे अगर हम मिलाते नहीं,
खूबसूरत हँसी को गँवाते नहीं।
हश्र उल्फत अगर ज्ञात होता हमें,
प्रीत के गीत फिर गुनगुनाते नहीं।
जिंदगी से बहारें रहेंगीं खफा,
जान पाते कभी मुस्कुराते नहीं।
बेवफा से वफा कर रहे जानते,
राज अपने उन्हें हम बताते नहीं।
‘मधु’ मुकद्दर अगर ज्ञात होता हमें,
दिल्लगी को गले से लगाते नहीं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश