हम प्रहरी है सीमाओं के,
जल थल और हवाओं के,
रहते हम हरदम चौकन्ने,
बन रक्षक हसीं फ़िज़ाओं के।
हो धूप छांव सर्दी गर्मी,
अपने निश्चय से नहीं डिगे,
दुश्मन के हर दुस्साहस पर,
तब छक्के उसके छुड़ा दिये।
जीते युद्ध आज तक सारे,
अपने दृढ़ निश्चय के बल पर,
दलते आये दाल मूंग की,
दुश्मन की छाती पर चढ़कर।
हिमशिखर सियाचिन जैसा हो,
भले कारगिल की चट्टानें,
खेमकरन या लोंगेवाला,
सदा गँवाता दुश्मन जानें
विश्वास दिलातें भारत मां को,
हम निज सर्वस्व लुटाएंगे।
बलिदान नहीं अब जाया हो,
हर ओर तिरंगा फहराएंगे॥
-कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश