हुऐ खुशनुमा हम भी दीदार करके,
बनी यार जोड़ी हमे प्यार करके।
खता क्या हुई यार हमसे बता दो,
सिवा दर्द के क्या मिला प्यार करके।
मिला प्यार तेरा लगे खुशनसीबी,
नही दूर जाना कभी खार करके।
रफाकत रखो तुम सदा यार मिलकर,
मिलेगा तुम्हें क्या ही तकरार करके।
चलन बेरुखी का तुम्हारा जो देखा,
कहाँ चल दिये यार लाचार करके।
दगा प्यार मे जान करते नही हैं,
सदा पूजते तुमको करतार करके।
करे आज सजदा खुदा मान तुमको,
मुहब्बत जतायेगे इजहार करके।
मुहब्बत मे तेरी जिये जा रही ऋतु,
नही छोड़ जाना तू मंझधार करके।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़