चैतन्य तरुण हो गयी धरा , जब से मेघा जल बरसाये ।
कोयल ने राग विरह छोड़ा, मल्हार राग फिर दुहराये ।
धरती ने मैल क्षरण करके, देखो नव यौवन पाया है ।
नदियों ने पानी ढो-ढो कर , सागर को का कर्ज चुकाया है ।
हरियाली है सब हरा भरा , ऊपर से मेघ दूत छाये,
अवनी की कोख हरी करने, मेघा आये मेघा आये।।1
बंजर के मंजर टूट रहे, धरती से अंकुर फूट रहे ।
सूखे सूखे से दूब तने, मनचाहा पानी लूट रहे ।
तितली उपवन में डोल रही ,नव रंग पंखुरी फैलाये,
कलियां मदमस्त नाचती हैं, भँवरों ने गीत नए गाये ।।2
क्रोधित होकर फटते बादल, गुस्सा भी अपना दिखा रहे ।
मनमाने प्राकृत दोहन से , मानस को संयम सिखा रहे ।
दामिनि ज्यों कड़के अंबर में , घर बार मवेसी घबराये,
पर्वत चट्टान गिरे झर के , वृक्षों को साथ बहा लाये ।।3
गिरिराज हिमालय से निकली , निर्झरणी का यौवन देखो ।
सागर से मिलने को आतुर , नदियों का तीव्र गमन देखो ।
मदमस्त उफनती धारों से ,पुल सड़क भवन घायल पाये ,
थर थर कांपे मिट्टी के घर ,”हलधर” भय से चक्कर खाये ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून