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ग़ज़ल – रीता गुलाटी

क्यो भूल चुके हमको,हम प्यार सम्भालें हैं,

दुख -दर्द  सभी अब तो तेरे ही हवाले हैं।

 

दिखते वो तो सीधे हैं,अंदर से वो काले हैं,

सुनते न किसी की वो,इज्ज्त को उछाले हैं।

 

मैं प्यार तुम्हें करती,कैसे ये भूला दूँगी,

पलकों के भरोसे है ,कुछ दिल के हवाले हैं।

 

आँखों मे छुपाया है, दुख दर्द जमाने का,

गर साथ मेरे साजन,रातों मे उजाले हैं।

 

चाहत इक पूजा है समझो तो खुदा मानो,

अल्फाज नये हैं ,पर अहसास निराले हैं।

 

हम आस न छोड़ेगे विश्वास न छोड़ेगे,

प्रभु साथ तेरा अब तो लगता ये शिवाले हैं।

 

दुनिया जो बसी मेरी,*ऋतु रब की इनायत थी,

ये प्रेम तेरा लगता,पढ़ लो ये  रिसाले हैं।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़

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