ऋतु मस्तानी लाती वर्षा,
सब के मन को भाती वर्षा।
बाग, बगीचे, वन, उपवन में,
नव निखार ले आती वर्षा।
नदी, सरोवर, ताल, तलैया,
सब की प्यास बुझाती वर्षा।
जीव, जंतु, चल, अचल सभी के,
दृग को बहुत सुहाती वर्षा।
मधुर स्वप्न की झलक दिखाकर,
कृषकों को हर्षाती वर्षा।
सावन के झूलों से मिलकर,
मधुर तराने गाती वर्षा।
रेशम की डोरी की गाथा,
को घर- घर पहुचाती वर्षा।
हरी चुनरिया माँ वसुधा को,
प्रेम सहित पहनाती वर्षा।
खेतों को आनन्दित कर के,
वापस घर को जाती वर्षा।
छेड़ रागिनी मधुर स्वरों की,
प्रेम सुधा बरसाती वर्षा।
आनंदित, हर्षित लख सबको,
मंद- मंद मुस्काती वर्षा।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश