मनोरंजन

जानो विज्ञान को (बाल जगत) – सुनील कुमार सजल

neerajtimes.com – बच्चों तुम अपने आसपास की घटनाओं को यूं तो देखते ही होगे। पर कभी सोचा इनके पीछे विज्ञान किस तरह कार्य करता है। आओं जाने विज्ञान को….

तुमने वेल्डिंग की दुकान में वेल्डर को वेल्डिंग करते हुए देखा होगा। उस समय अजीब गंध  महसूस होती है। कुछ लोग इसे साधारण तौर ”एसीटिलीन गैस” की गंध कह देते हैं क्योंकि वेल्डिंग में एसीटिलीन का उपयोग होता है। पर वास्तव में यह ओजोन की गंध होती है। जब वेल्डिंग कार्य किया जाता है तब स्पार्किंग से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें आसपास व्याप्त आक्सीजन को ओजोन में बदल देती हैं।

शैम्पू से बाल धोने पर धूल के कण आसानी से अलग होते हैं व मुलायम चमकदार हो जाते हैं। शैम्पू में उपस्थित एस.एल.एस.यानि सोडियम लारेल सल्फेट (रसायन) बालों में तेल पसीने से चिपके धूल कण के साथ कोलायडल सोल्यूशन बनाता है जो अवक्षेप के रूप में होता है, और पानी से धोने पर धूल कण तेल पसीना अलग हो जाते हैं, और  बाल मुलायम चमकदार हो जाते हैं। इसी तरह से उपरोक्त रसायन ड्रेन्ड्रफ को भी अलग करता है। हालांकि शैम्पू नियमित या प्रतिदिन इस्तेमाल करने पर बाल अपने गुण खोने लगते हैं।

आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी किसी बीमारी से मरे व्यक्ति की लाश  पर महुआ की शराब का लेपन करते हैं। उनकी धार्मिक मान्यता जो भी हो पर इसका अपना वैज्ञानिक कारण है। शराब जो एल्कोहल है की उपस्थिति में सूक्ष्म जीवी (रोगाणु कीटाणु) निष्क्रिय हो जाते हैं और अपना दुष्प्रभाव लाश पर नहीं छोड़ पाते। जिसके कारण लाश लंबे समय तक सुरक्षित रहती है कम से 12-15 घंटे तक बदबू नहीं देती। साथ ही लाश में व्याप्त बीमारी के कीटाणु लाश के आसपास रहने वालों पर अपना प्रभाव नहीं दिखाते। आदिवासी अपनी जड़ी-बूटियों का अर्क बीमार व्यक्ति को शराब  में मिलाकर देना उचित मानते है। उनमें ऐसी मान्यता है इससे दवा ज्यादा प्रभाव करती है बात सच भी है। आयुर्वेद दवाओं में ‘ऑसव’ समूह  शराब का एक रूप ही तो है। अधिकांश अंग्रेजी दवाओं में ऐल्कोहल मिला होता है।

द्य मलेरिया आने पर रक्त का स्लाइड पर सेम्पल क्यों लेते हैं। इसका सीधा सा कारण है। रक्त जीवन की एक इकाई है। अत: सारे रोगों का अंदाजा  भी इससे लगाया जा सकता है। रक्त में लाल रक्त कणिकाएं (आर.बी.सी.) होती है। जब मलेरिया का बैक्टिरिया मच्छर के माध्यम से आपके रक्त में प्रविष्ट होता है।  तो अपनी संख्या बढ़़ाने के लिए लाल रक्त कणिकाओं में अपने अंडे देता है। अंडे से लाखा बाहर आते हैं तो ये कणिकाएं उनके भोजन के साथ कणिकाओं रहने का स्थान भी होती है। बाद में ये बड़े होकर इन पर अंडे देते हैं। जब रक्त स्लाइड के रक्त को टेस्ट किया जाता है। तब कणिकाओं में उपस्थित अंडे सूक्ष्मदर्शी से दिखाई देते हैं। इससे ‘लैब टेक्निशियन’ पता लगा लेता है  कि व्यक्ति को किस प्रकार का बुखार है। (विनायक फीचर्स)

Related posts

ग़ज़ल – ऋतु गुलाटी

newsadmin

गजल – ऋतु गुलाटी

newsadmin

अब सपने ले रहे विस्तार हैं- रोहित आनंद

newsadmin

Leave a Comment