बात अपनी सदा मत किया कीजिए,
चाहतें और की भी सुना कीजिए ।
जीतना दिल अगर सीख पाये नहीं,
फिर किसी को न अपना कहा कीजिए ।
प्यार हो लेखनी से अगर आपको,
सत्य की ही प्रशंसा किया कीजिए।
दोष से रिक्त अस्तित्व की चाह हो,
नित्य आलोचकों से मिला कीजिए।
प्रेम हो ‘मधु’ अगर आपको देश से,
एकता, शांति की तब दुआ कीजिए।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश