मनोरंजन

पावस को ज्ञापन – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

दिन-दिन गर्मी बढ़ती जाती, ओ पावस कब आओगे?

झुलस रहे हैं सारे प्राणी, शीतलता कब लाओगे?

 

केवल मानव जाति न भोगे, किये हुए निज पापों का।

वसुधा नित परिणाम भोगती, मनुज जनित अभिशापों का।

जल से भरे मेघ दल आकर, कब ठंडक पहुँचाओगे?1

 

मानव तो मानव है सँग में, सकल जीव अब तपन सहें।

इस प्रचंड गर्मी से बचकर, प्राणी बोलो कहाँ रहें?

रिमझिम रिमझिम वर्षा कर कब, दुर्दिन दूर भगाओगे।2

 

एकम गर्मी अति प्रचंड है, वृक्षों की अब छाँह नहीं।

दूजे जल संकट है भारी, नीर नहीं मिल सके कहीं।

जल संचय हर जगह हो सके, क्या इतना बरसाओगे?3

 

उमड़-घुमड़ कर नभ मण्डल को, आच्छादित अब करवाना।

उच्च तपन से इस धरती को, कुछ तो राहत दिलवाना।

गर्जन-तर्जन सँग दुंदुभि से, मन को कब हर्षाओगे?4

– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश

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