सीख हमें देने आई है, गर्मी की बढ़ती रफ्तार।
प्रकृति प्रबंधन को मत छेड़ो,पहचानो जीवन आधार।
गर्मी क्यों बेहाल करे क्यों, आहत हैं जीवों के गात।
जल स्तर क्यों घटता जाता,वर्षा क्यों करती है घात।
कारण से अनभिज्ञ न कोई, भूल करें पर बारम्बार….. ।
वृक्षों का जीवन उपकारी, गर्मी को देता है मात।
आमंत्रित कर के बादल को, भेंट हमें देता बरसात।
भुला दिया यह मानव ने नित,घटा रहा उनका परिवार…।
जल संरक्षण, वृक्षारोपण , बेहद आवश्यक है आज।
प्रकृति साथ खिलवाड़ न हो तब,बदले ऋतुओं का अंदाज।
प्रकृति प्रीति जीवन सागर का, करती आई है विस्तार…।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्य प्रदेश